वो तारीखें
सब उम्मीदें गर्द और
हर खाहिश तल्ख़* है!,
पलकों के ताबूतों में,
हर खाब सोए-सोए से!
गुज़री नम तारीखें भी,
उजली-सी खाहिशों के साथ,
चुन दी जाती है 'ग़यास'-
गए साल की दीवारों में...
पर क्या करूँ के यहाँ तक?
इन नयी तारीखों में भी-
आती है तुम्हारी ही सदा-
उन दीवारों से!
पर तुम नहीं आते!!!
पर तुम नहीं आते!!!
*तल्ख़ = कड़वा , Bitter in taste
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