जो दिनों ना हों बस्तियाँ,
ना रातें ही रहायशी !
तो क्या खाब की बातें,
क्या खयाल की?
ना रातें ही रहायशी !
तो क्या खाब की बातें,
क्या खयाल की?
साँसें सुलग जातीं हैं,
और धुँआँ नहीं बुझता!
आँखें लहक जातीं हैं
पर खाब नहीं उठता!
जो दफ़न हर जवाब
करते हों धुँआँ हर सवाल!
तो क्या जवाब की बातें,
क्या सवाल की?
और धुँआँ नहीं बुझता!
आँखें लहक जातीं हैं
पर खाब नहीं उठता!
जो दफ़न हर जवाब
करते हों धुँआँ हर सवाल!
तो क्या जवाब की बातें,
क्या सवाल की?
जो छीन कर,
बूंदें सरक से,
दरिया उबलता है !
पर डूब कर जिसमे
फ़लक की महक ना मिलती हो !
तो क्या छूट जाने की बातें,
क्या विसाल की ?
बूंदें सरक से,
दरिया उबलता है !
पर डूब कर जिसमे
फ़लक की महक ना मिलती हो !
तो क्या छूट जाने की बातें,
क्या विसाल की ?
जो लिख देने से मेरे,
आँखों कोई लम्हा ना उतरा हो!
या पढ़ देने से जी,
कुछ देर ना थम जाये !
तो क्या 'गालिब' की बातें
क्या 'गयास' की?
क्या खाब की बातें,
क्या खयाल की?
आँखों कोई लम्हा ना उतरा हो!
या पढ़ देने से जी,
कुछ देर ना थम जाये !
तो क्या 'गालिब' की बातें
क्या 'गयास' की?
क्या खाब की बातें,
क्या खयाल की?
When I couldn't behold Days
altogether the nights
what could I say
for the dreams
and the sights
when breath burns up
but fume doesn't stop
eyes get grilled but
dreams don't hop
when buried all replies
smoke up the asked
what could I say for answer
and what for asked.
Snatching droplets
from the sky
springs spring up
without being shy
on diving deep
into the river
one can't get fragrance
of the sky
What could I say for 'Hi'
and what for 'Bye'
On the writing of mine
one can't remember past
on reading some line
hearts don't say 'Alhas!'
then abandon the 'Ghalib'
and leave the 'Ghayas'
what could I say
for the dreams
and what for thoughts