ख़यालों की खुली झालर बाँध लें
उम्मीदों पे बातें टिका कर
ज़रा दिनों को आराम दें,
के यूँ भी कई रातों से हमसे
कई रातें नाराज़ हुई बैठीं हैं !
कहती हैं - -
बस दिन ही दिन मनाते हो ,
आओ कुछ तो खाब सजा लें ! ?
अब इसे कुछ जवाब दें ही दें
और ज़रा देर को ही सही
जी को बांधकर
किसी मटके में डाल दें ,
किसी नखलिस्तान* से
कुछ सुकूँ मांग लें,
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