यूँ वक़्त गुज़र
तो रहा है सुकूँ से,
लेकिन वही कसक
उठ भी जाती है फिर से,
ज़हन-ओ-जी हलकान हुआ जाता है!
जब पूछ देते हो तुम की -
"हाल कैसे हैं आज कल?"
कुछ गिरता उठता सा
शोर होता तो रहा है जी से.
पर जाने क्यूं नब्ज़
बुत हो भी जाती है फिर से,
जब हकीमी लिबास में तुम
रखकर अपना हाथ इस पे
पूछ देते हो और के -
"हाल कैसे हैं आज कल?"
बुत -pl. explain.
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