रिश्तों की बेहिसाबी में,
इक यूँ भी रात आई-
उनकी इक मुबारक के,
शुक्रिया तीन अदा हुए!
जो बातें चलीं,
तो सामने बात आई-
के फिर मिल गए तो
फिर गुमशुदा हुए!
जो पढ़ गए औ' बढ़ गए
तो तो कुछ नहीं!
जो रुक गए कुछ देर तो ,
तो गम-ज़दा हुए!
मुलाकातें नहीं बस,
बातें हुईं थीं!
नाज़ुक तो थे हालात,
अब खुशनुमा हुए!
रिश्तों की बेहिसाबी में,
इक यूँ भी रात आई-
उनकी इक मुबारक के,
शुक्रिया तीन अता हुए!
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