Sunday, October 3, 2010

रिश्तों की बेहिसाबी में


रिश्तों की बेहिसाबी में,
 इक यूँ भी रात आई-
उनकी इक मुबारक के,
 शुक्रिया तीन अदा हुए!

जो बातें चलीं,
 तो सामने बात आई-
के फिर मिल गए तो
फिर गुमशुदा हुए!

जो पढ़ गए औ' बढ़ गए
तो तो कुछ नहीं!
जो रुक गए कुछ देर तो ,
तो गम-ज़दा हुए!

मुलाकातें नहीं बस,
बातें हुईं थीं!
नाज़ुक तो थे हालात,
अब खुशनुमा हुए!

रिश्तों की बेहिसाबी में,
इक यूँ भी रात आई-
उनकी इक मुबारक के,
शुक्रिया तीन अता हुए!

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