Wednesday, July 28, 2010

होता रहूँ होम ज़रा-ज़रा,और कोइ खुशबास हो जाऊँ!

होता रहूँ होम ज़रा-ज़रा
और कोई खुशबास हो जाऊँ!
जन्ज़ीरें पिघल जाएं,
और मैं आज़ाद हो जाऊँ!



किसी नदी मे बहकर,
कोई समन्दर छू आऊँ!
या बादल का कोई,
टुकड़ा हो जाऊँ!
छनक के बरसूँ,
किसी तपते हुए जी पर ,
और छूकर भाप हो जाऊँ!

किसी मन्दिर को जाती
कोई राह हो लूँ,
कभी नमाज़ मे घुलकर,
अजान के सुरों चढ़कर,
कोई अरदास हो जाऊँ!

आपे मे कितनों को,
लादे फ़िरता हूँ खुद पर!
पटक कर इनको कहीं,
ज़रा बे-आप हो जाउँ!
होता रहूँ होम ज़रा-ज़रा
और कोई खुशबास हो जाऊँ!



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