Thursday, June 3, 2010

ख़यालों की खुली झालर बाँध लें



ख़यालों की खुली झालर बाँध लें  
उम्मीदों पे बातें टिका कर
ज़रा दिनों को आराम दें,
के यूँ भी कई रातों से हमसे  
कई रातें नाराज़ हुई बैठीं हैं !   
कहती हैं - -
बस दिन ही दिन मनाते हो ,
आओ कुछ तो खाब सजा लें ! ?
अब इसे  कुछ जवाब दें ही दें 
और ज़रा देर को ही सही 
जी को बांधकर 
किसी मटके में डाल दें , 
किसी नखलिस्तान* से 
कुछ सुकूँ मांग लें, 
उम्मीदों पे बातें टिका कर
ज़रा दिनों को आराम दें,
कुछ कहा इसका भी मान लें ... 



*नखलिस्तान  = Oasis in desert

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