चहल कदमी उन बातों की, जो होवे दूर तलक
लौट आने का मुमकिन, इंतज़ार नहीं होता.
जी से थमनें की आहटें होती हैं बस
आगे किसी धड़कन का, आगाज़ नहीं होता.
बेवक्त रुकी खामोशी से, कैसे चलेगा सफ़र ?
मौका-ए-चर्चे में और, कुछ ख़ास नहीं होता.
चलते चले जायेंगे हम, जो ये बातें चलेंगी
वर्ना, सन्नाटों में अब, वो 'गयास' नहीं होता !
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