कदम बार बार
थमनें को कहते हैं,
अध-खुली आँखें
कराहती रहतीं हैं,
जैसे जी के ज़ख्म
सराहती रहतीं हैं.
जिगर ज़ार ज़ार औ'
धडकनें महफूज़ हुईं,
सांसें थकी-थकी सी
बैठने को कहतीं हैं,
लगता है अब में सब
उठने को है लेकिन ,
तुम्हारी बातें हैं के
गहराती रहतीं हैं ?
मुझसे, मुझको
बहकाती रहतीं हैं!
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