परेशानियों का मेरी सबब है जो,
दर-असल वो मेरा मददगार भी है.
उम्र-ए-दराज़ की जो सजा पायी है मैंने
इसमें कुछ तो वो गुनाहगार भी है.
यूं अनजाने क्या कुछ कहता फिरा उसको
बयान-ए-होश तो परवरदिगार ही है.
ख़यालों में 'गयास' खिला गुल नहीं वो
मौसम-ए-बहार में बेशुमार भी है.
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