ज़रा-सि कुनगुनाहट इश्कियों की
बर्दाश्त नही होती,
तपने और तपाने लगते हो।
दो बूँद मीठी बातों की
जो पड़ जाती हैं आँखों में,
अपनी सुर्ख बातों से
जलने और जलाने लगते हो।
मिजाज़ के क्या हैं केहने
मुद्दतों में पड़ता नर्म है!
पर ज़राक मे गर्म है!
तुम्हारा ये अजीब जस्तापन है।
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