Saturday, May 1, 2010

बस कह लेते हैं कुछ सुन लेते हैं।


अब और नहीं कुछ होता हमसे
बस कह लेते हैं, कुछ सुन लेते हैं।

देखा कहाँ मैनें बरसों कुछ
जगते से ख्वाब, कुछ बुन लेते हैं।

ना आना मेरे पीछे कोइ, हम
कदमों के निशाँ, खुद चुन लेते हैं।

डरा सा जाता हूँ हर पेशी पे मैं
वो जो कुछ कह दें, हम सुन लेते हैं।

क्यूँ उम्मीद बंधती है फ़िर फ़िर
यूँ गिर लेते हैं, यूँ उठ लेते हैं।

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