Sunday, May 23, 2010

याद आती है इतनी क्यूँ, फिर माँ की आज



याद आती है इतनी क्यूँ,  फिर माँ की आज 
अरसे से उसे गर पल को भी भुलाया होगा ?
चूल्हे की आंच में जो, रखती होगी वो लिट्टियाँ, 
मुझे बुला कर पास चूल्हे ने, जरूर उसे रुलाया होगा...
 या फिर ..   


नीली पैंट, सफेद कमीज़ पहिने, घर को लौटता

स्कूल का कोई लड़का उसको नज़र आया होगा,
और दशक पीछे की बातें कहकर के
आंसुओं में आँचल फिर नहाया होगा...


अब इतनी दूर से , क्या ही कर सकता हूँ  माँ ?
लूँगा आकर खबर इनकी, वो चूल्हा, वो लिट्टी
और वो स्कूल का लड़का 
जो इन्होने तुझको  रुलाया होगा ...
लेकिन फिर माफ भी तो कर देता हूँ 
हर किसी को ये सोचकर -
इसकी भी कोई माँ होगी, उसका ये बेटा होगा.

क्या कहूँ तुझको जो, इतनी भोली है 
सोचा है बैठकर फुर्सत से जब कभी, 
जाने कितना ही इन आँखों से भी
थम-थम कर पानी आया होगा.  

याद आती है इतनी क्यूँ,  फिर माँ की आज...
स्कूल का कोई लड़का उसको नज़र आया होगा...
मुझे बुला कर पास चूल्हे ने, जरूर उसे रुलाया होगा..     

1 comment:

  1. WoooooW...
    Dil ko Chuu gaya..aur Ghar ki yaad aa gayi...2 line yaad aayi hai..wo likhta hoo...

    "माँ बाप से बड़ा कोई हो नहीं सकता और भगवान भी इनके आशीषो को काट नहीं सकता|"

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