अभी अभी तो
गीली की थी मिट्टी ,
उठने लगी थी
कोइ भीनी खुशबू।
नहाती-सी थी ये
आबो-हवा,
होने लगी थी
सौन्धी-सी आरज़ू।
खनखनाते थे
हर शाख पे पत्ते,
मेहकता-सा था आँगन।
चेहकते-से थे परिन्दे,
खुद को ही लगा था शायद
गुदगुदाने ये मन।
I found while searching in Google that 'Ghayas' charaterises a person who excels in his deeds while being alone. Thus it suits.This blog contains compositions from me.Let's have a 'read'!
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