उस कल से मेरे यहाँ रात ही बरसती रही
तस्लीमें सुबह-ओ-शाम जाने को तरसती रहीं।
वो तुम ने केह जो दिया 'नहीं आज के बाद'
तो ज़िन्दगी इस आज में ही सरकती रही।
किरनों का अता-पता नहीं अब तलक मुझको
न-जाने किन अँधियारों में ये उलझतीं रहीं।
अब के होश आया है तुम्हारा ही नाम लेकर,
साँसे भी धड़कनों सी कहीं भटकती रहीं।
अब और रुसवा न-करो मुझको माफ़ करो,
दौराँ तुम खुद भी तो रहरहकर संभलती रहीं।
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