Friday, May 28, 2010

ये टूटा चुल्हा



टूटा  चूल्हा  देखकर
मालूम होता था-
कोहरे के बिछौने पे 
यहाँ कोई सोता था।
और जब देर रात कभी
ज़ोर का जाड़ा होता हो,
तो उठकर, ये ठंडा चूल्हा  
टटोलता हो।
काश! बुझी बात का
कोई टुकड़ा अब भी
जलता हो!
और नाउम्मीद फ़िर
यही सोचता हो-  
साँझ तो बातें बुझी हैं,
सुबहो तलक 
हर खाब गबन होगा!
इसी चूल्हे में सिमटकर
फ़िर खुद आप हवन होगा!

करीब से देखो 
तो तुम्हे भी 
यही मालूम होगा
ये टूटा चूल्हा, ये बुझी आग
बहुत जाग कर कोई 
एक नींद को सोता होगा...!


No comments:

Post a Comment