Sunday, May 30, 2010

कई गांठें जिन्दगी की




जो धूप नज़र से टपकती है ,
उम्मीदें गर्म कर देती है !
मुंह में भरकर ठन्डे अरमान 
जो फूँक देती है,
ये सूरज बुझा देती है !
बातों में सनें खाबों को 
जो बोल देती है ,
कई गांठें जिन्दगी की 
खोल देती है!
जो कुछ भी कहूँ
मैं उसके बारे में,
 दुनिया उसे नज़्म 
बोल देती  है !

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