चाहे कितना ही ढूँढ़ूँ करीब होकर,
क्यूँ बड़े दूर हो तुम।
मुस्कुराहट से वाकिफ़ है दुनिया, लेकिन
कहीं तो मजबूर हो तुम।
जस्ते के बुत के शौकीं नहीं हम,
जी से अब चूर-चूर हो तुम।
आसमाँ से टपका,खाहिश-ए-ज़मीं लिये,
ज़मीं तो नहीं पर वो खजूर हो तुम।
मुर्दा जिस्म जलाने मे भी रोते हैं लोग,
चुप-चाप जी जलाने मे मशहूर हो तुम।
ढूँढ़ता अब भी करीब हूँ तुमको,
पर लगता है सच, कहीं दूर हो तुम।
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