Monday, May 3, 2010

रही और नहीं खाहिश कोई


तुम्हें सोचा करें और लिक्खा करें,
रही और नहीं खाहिश कोई.
 जिए ता-उम्र इक गुज़ारिश किये,
करे और भी क्या आजमाइश कोई.
हो लेना मेरे कूचे, आखिरी वक़्त है,
अब और नहीं फरमाइश कोई.
धीमीं साँसें 'गयास' कुछ और भी ले,
गर आने की हो गुंजाईश कोई.  

   

2 comments:

  1. Waah ustaad Waah !!!
    Hard to imagine such a good command on Urdu, Hindi and the way of compiling the feeling in such a nice way especially by an Er.
    I like your’s all the Nazm’s…
    Waiting for some new one
    Keep it up dude..

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